Written by Prakash kewat
PE Ratio या Price to Earnings Ratio शेयर मार्केट में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले वैल्यूएशन मीट्रिक्स में से एक है। यह एक कंपनी के शेयर की कीमत को उसकी प्रति शेयर आय (EPS) से तुलना करता है। PE Ratio जितना ज्यादा होगा, कंपनी के शेयर उतने ही महंगे होंगे।
PE Ratio की गणना करने के लिए कंपनी के शेयर की कीमत को उसकी प्रति शेयर आय (EPS) से भाग दें। उदाहरण के लिए, अगर किसी कंपनी के शेयर की कीमत 100 रुपये है और उसकी प्रति शेयर आय 10 रुपये है, तो उस कंपनी का PE Ratio 10 होगा।
PE Ratio का उपयोग यह समझने के लिए किया जाता है कि किसी कंपनी के शेयर महंगे हैं या सस्ते। एक उच्च PE Ratio का मतलब है कि कंपनी के शेयर महंगे हैं, जबकि एक निम्न PE Ratio का मतलब है कि कंपनी के शेयर सस्ते हैं। हालांकि, यह ध्यान रखना जरूरी है कि PE Ratio सिर्फ एक ही मीट्रिक है जिसका उपयोग कंपनी के शेयरों की कीमतों का विश्लेषण करने के लिए किया जाना चाहिए। अन्य मीट्रिक्स, जैसे कंपनी की वृद्धि दर, लाभप्रदता और उद्योग की स्थिति को भी ध्यान में रखना चाहिए।
PE Ratio के दो मुख्य प्रकार हैं: – ट्रेलिंग PE Ratio: यह पिछले 12 महीनों की प्रति शेयर आय के आधार पर गणना की जाती है। – फॉरवर्ड PE Ratio: यह भविष्य की प्रति शेयर आय के अनुमानों के आधार पर गणना की जाती है।
फॉरवर्ड PE Ratio का उपयोग यह समझने के लिए किया जाता है कि बाजार कंपनी के भविष्य के प्रदर्शन के बारे में क्या सोचता है। अगर किसी कंपनी का फॉरवर्ड PE Ratio उसके ट्रेलिंग PE Ratio से अधिक है, तो इसका मतलब है कि बाजार को उम्मीद है कि कंपनी की भविष्य में आय में वृद्धि होगी।
PE Ratio एक उपयोगी मीट्रिक है, लेकिन इसकी कुछ सीमाएं भी हैं। उदाहरण के लिए, PE Ratio का उपयोग दो अलग-अलग उद्योगों में कंपनियों की तुलना करने के लिए नहीं किया जा सकता है, क्योंकि विभिन्न उद्योगों में कंपनियों के लिए अलग-अलग PE Ratio सामान्य होते हैं। इसके अलावा, PE Ratio का उपयोग तेजी से बढ़ती कंपनियों का विश्लेषण करने के लिए भी नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इन कंपनियों के PE Ratio अक्सर उच्च होते हैं।
PE Ratio एक उपयोगी मीट्रिक है जिसका उपयोग यह समझने के लिए किया जा सकता है कि किसी कंपनी के शेयर महंगे हैं या सस्ते। हालांकि, यह ध्यान रखना जरूरी है कि PE Ratio सिर्फ एक ही मीट्रिक है जिसका उपयोग कंपनी के शेयरों की कीमतों का विश्लेषण करने के लिए किया जाना चाहिए। अन्य मीट्रिक्स, जैसे कंपनी की वृद्धि दर, लाभप्रदता और उद्योग की स्थिति को भी ध्यान में रखना चाहिए।