By Prakash Kewat
स्टॉक स्प्लिट एक प्रक्रिया है जिसमें कंपनी अपने शेयरों की संख्या बढ़ाकर शेयर कीमत को कम करती है। इससे शेयरधारकों का हिस्सा बरकरार रहता है, लेकिन प्रति शेयर कीमत घटती है।
कंपनियां कई कारणों से स्टॉक स्प्लिट कर सकती हैं, जैसे कि: – शेयरों को अधिक किफायती बनाना, ताकि छोटे निवेशक भी उनमें निवेश कर सकें। – शेयरों की तरलता (Liquidity) बढ़ाना, ताकि शेयरों को खरीदना और बेचना आसान हो। – कंपनी की छवि को बढ़ाना और शेयरधारकों में विश्वास बढ़ाना।
स्टॉक स्प्लिट के बाद, शेयरधारकों के पास पहले से मौजूद प्रत्येक शेयर के लिए दो या दो से अधिक शेयर होंगे। हालांकि, प्रति शेयर कीमत आधी या आधे से कम हो जाएगी। कुल मिलाकर, शेयरधारकों की निवेश राशि और कंपनी की कुल मार्केट कैप में कोई बदलाव नहीं होगा।
मान लीजिए कि किसी कंपनी के 100 रुपये प्रति शेयर के भाव से 1000 शेयर हैं। कंपनी 2:1 स्टॉक स्प्लिट करती है, जिसका अर्थ है कि प्रत्येक शेयर को दो शेयरों में विभाजित किया जाएगा। विभाजन के बाद, शेयरधारकों के पास 2000 शेयर होंगे, लेकिन प्रति शेयर कीमत 50 रुपये हो जाएगी। कुल मिलाकर, शेयरधारकों की निवेश राशि और कंपनी की कुल मार्केट कैप 50,000 रुपये ही रहेगी।
– फॉरवर्ड स्टॉक स्प्लिट: फॉरवर्ड स्टॉक स्प्लिट में, कंपनी प्रत्येक मौजूदा शेयर को दो या अधिक शेयरों में विभाजित करके बकाया शेयरों की संख्या बढ़ाती है। इससे प्रति शेयर कीमत कम हो जाती है। – रिवर्स स्टॉक स्प्लिट: रिवर्स स्टॉक स्प्लिट में, कंपनी दो या अधिक मौजूदा शेयरों को एक शेयर में मिलाकर बकाया शेयरों की संख्या कम कर देती है। इससे प्रति शेयर कीमत बढ़ जाती है।
स्टॉक स्प्लिट एक आम प्रक्रिया है जो कंपनियां अपने शेयरों को अधिक किफायती और तरल बनाने के लिए करती हैं। स्टॉक स्प्लिट से शेयरधारकों की निवेश राशि और कंपनी की कुल मार्केट कैप में कोई बदलाव नहीं होता है।